क्या कलम दवात क्या
क्या है बात इत्तिफ़ाक़ क्या
गहना है अगर जन—धन
और लिबास बदन
तो मन की आयिने पर छाप क्या।
त
क्या कलम दवात क्या
क्या है बात इत्तिफ़ाक़ क्या
गहना है अगर जन—धन
और लिबास बदन
तो मन की आयिने पर छाप क्या।
त
ऐहसासों को पिरो कर कुछ जता सकता हूँ कभी पूरा कभी अधूरा शब्दों के उतार चढ़ाव में लय को पहचान सकता हूँ, कही बात की बात को बता सकता हूँ सुनी बात के मर्म को समझ कभी पूरा कभी अधूरा अपने अंतर्द्वंद को आवाज़
एक परछाई मन ने बनायी रौशनी उसे सामने लायी, छिपे तो अंधेरों में ख़याल हैं कितने देखो अगर तो प्यार है उनमें, लकीरों की गुज़ारिश सामने आयी एक परछाई मन ने बनायी। त