
रंग जब पानी से मिले
तो ऐसी कुछ गुफ़्तगू हुई
बयान दर्ज है पन्नों में इन
हसीन शाम जो शुरू हुई।
तरुण
रंग जब पानी से मिले
तो ऐसी कुछ गुफ़्तगू हुई
बयान दर्ज है पन्नों में इन
हसीन शाम जो शुरू हुई।
तरुण
ऐहसासों को पिरो कर कुछ जता सकता हूँ कभी पूरा कभी अधूरा शब्दों के उतार चढ़ाव में लय को पहचान सकता हूँ, कही बात की बात को बता सकता हूँ सुनी...
एक परछाई मन ने बनायी रौशनी उसे सामने लायी, छिपे तो अंधेरों में ख़याल हैं कितने देखो अगर तो प्यार है उनमें, लकीरों की गुज़ारिश सामने आयी...
Comments