top of page

ऐहसासों को पिरो कर कुछ जता सकता हूँ

कभी पूरा कभी अधूरा

शब्दों के उतार चढ़ाव में लय को पहचान सकता हूँ,


कही बात की बात को बता सकता हूँ

सुनी बात के मर्म को समझ

कभी पूरा कभी अधूरा

अपने अंतर्द्वंद को आवाज़ दे सकता हूँ,


अपने अहंकार को पहचान सकता हूँ

कहाँ नरम कहाँ सख़्त है पोशाक

समंदर में हस्ती की धूल धुला सकता हूँ,


क्या मैं कवि हूँ

या कविता को अभी भी रोका है मैंने

ज़हन से ज़ुबान के बीच,


शायद मैं कवि हूँ

आप मेरे मन मंदिर में हैं अगर स्थापित

तो मैं विश्वास करूँ,


कि हाँ मैं कवि हूँ।


तरुण

  • Aug 5, 2021

एक परछाई मन ने बनायी

रौशनी उसे सामने लायी,


छिपे तो अंधेरों में ख़याल हैं कितने

देखो अगर तो प्यार है उनमें,


लकीरों की गुज़ारिश सामने आयी

एक परछाई मन ने बनायी।




  • Aug 4, 2021

ree

अगर आवाज़ में आभास है

ree

और लिखावट में अहसास है

ree

तो इस शब्द में ईश्वर का वास है


आप अगर कहेंगे की उन्हें कहाँ यहाँ ले आए?

यूँ तो हर शब्द में वो हैं समाए

शब्द ही क्या, शब्द के बीज में जो देखे वो पाए


यजमान दुरुस्त आपकी बात है

पर तरंग उस छवि की इसमें ख़ास है।


all rights reserved by artist
​तरुण

bottom of page