क्या मैं कवि हूँ?
- T
- Aug 23, 2021
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ऐहसासों को पिरो कर कुछ जता सकता हूँ
कभी पूरा कभी अधूरा
शब्दों के उतार चढ़ाव में लय को पहचान सकता हूँ,
कही बात की बात को बता सकता हूँ
सुनी बात के मर्म को समझ
कभी पूरा कभी अधूरा
अपने अंतर्द्वंद को आवाज़ दे सकता हूँ,
अपने अहंकार को पहचान सकता हूँ
कहाँ नरम कहाँ सख़्त है पोशाक
समंदर में हस्ती की धूल धुला सकता हूँ,
क्या मैं कवि हूँ
या कविता को अभी भी रोका है मैंने
ज़हन से ज़ुबान के बीच,
शायद मैं कवि हूँ
आप मेरे मन मंदिर में हैं अगर स्थापित
तो मैं विश्वास करूँ,
कि हाँ मैं कवि हूँ।
तरुण
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