चले चल
- T
- Mar 15, 2021
- 1 min read
Updated: Jul 15, 2021
ऐ मुसाफ़िर चले चल,
साँसों को बहने दे लम्हों पर,
ऐ मुसाफ़िर चले चल,
मंज़िल का तुझे अब क्या डर।
- तरुण
Updated: Jul 15, 2021
ऐ मुसाफ़िर चले चल,
साँसों को बहने दे लम्हों पर,
ऐ मुसाफ़िर चले चल,
मंज़िल का तुझे अब क्या डर।
- तरुण
ऐहसासों को पिरो कर कुछ जता सकता हूँ कभी पूरा कभी अधूरा शब्दों के उतार चढ़ाव में लय को पहचान सकता हूँ, कही बात की बात को बता सकता हूँ सुनी...
एक परछाई मन ने बनायी रौशनी उसे सामने लायी, छिपे तो अंधेरों में ख़याल हैं कितने देखो अगर तो प्यार है उनमें, लकीरों की गुज़ारिश सामने आयी...
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